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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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अध्याय 3  शिक्षा-शास्त्री

विष्णु शास्त्री चिपलूणकर के निधन और तिलक तथा आगरकर के कारावास का कोई विपरीत प्रभाव न्यू इंग्लिश स्कूल पर नहीं पड़ा। 12 अक्तूबर, 1882 को जब उन्होंने पुनः कार्य आरम्भ किया, तो यह जानकर उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई कि समाज-हित के कारण उन्हें जो कष्ट सहना पड़ा, उससे घटने की बजाए इस संस्था की लोकप्रियता और बढ़ी ही थी। 'केसरी' और 'मराठा' भी बड़े मजे से चल रहे थे। अतः ये नवयुवक नए जोश-खरोश के साथ पुनः अपने काम में जुट गए। उनका मानसिक ज्ञान विस्तृत हो चुका था। यद्यपि उन दोनों में समाज-सुधार के विषयों पर काफी मतभेद था, जो समय-समय पर पत्रिकाओं के स्तम्भ-लेखों में प्रकट हो जाया करता था, फिर भी उनकी मैत्री में कभी कोई कमी नहीं आई।

उनको अब चिन्ता इस बात की थी कि किसी प्रकार स्कूल को कोई सुदृढ़ आधार प्रदान किया जाए और इस स्कूल के सुदृढ़ विस्तार-स्वरूप एक कला-महाविद्यालय (आर्ट्स कालेज) खोला जाए। इस प्रयोजन के लिए सेवा-भावना से एक शिक्षा समाज स्थापित करने का विचार उनके मस्तिष्क में आरम्भ से ही पनप रहा था, किन्तु इस विचार की सार्वजनिक अभिव्यक्ति 1883 की वार्षिक रिपोर्ट में ही की गई, जिसमें कहा गया था :

''हम लोगों ने लोकप्रिय शिक्षा के इस महत्तम कार्य-भार को इस सुदृढ़ विश्वास से ग्रहण किया है कि मानव-सम्भता के सभी अभिकर्ताओं में केवल शिक्षा ही एक ऐसी अभिकर्तृत्व-शक्ति है, जिसके माध्यम से गिरे हुए देशों का आर्थिक, नैतिक और धार्मिक पुनरुत्थान होता है और उसी से धीरे-धीरे शान्तिपूर्ण क्रान्ति से वे उठकर संसार के सर्वाधिक उन्नत देशों के स्तर पर जा पहुंचते हैं।''

इस दिशा में एक मूलभूत कदम 24 अक्तूबर, 1884 को उठाया गया, जब समाज गठित करने तथा न्यासी (ट्रस्टी) परिषद का चुनाव करने के लिए सहानुभूति रखनेवाले व्यक्तियों की एक सभा हुई। इस सभा में भाग लेनेवालों में महादेव रानडे, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापकों में से एक सर विलियम वेडरबर्न, डॉ० रा० गो० भांडारकर, प्रोफेसर वर्डस्वर्थ और का० त्र्यं० तेलंग भी शामिल थे। इन युवकों ने अपने उत्साह और योग्यता से केवल जनता की सहानुभूति ही नहीं, बल्कि सरकार का समर्थन भी प्राप्त कर लिया।

इस प्रकार डेक्कन एजुकेशन सोसायटी का जन्म एक शुभ मुहूर्त में हुआ। इसके संरक्षकों में वाइसराय, लॉर्ड रिपन और बम्बई के गवर्नर सर जेम्स फर्ग्युसन भी थे। उनके उदाहरण का अनुगमन कई राजाओं-महाराजाओं ने भी किया और वर्ष के अन्त तक कॉलेज की भवन-निधि के लिए 75,000 रुपये के दान का वचन मिल गया। इस कॉलेज का नाम सर जेम्स फर्ग्युसन के नाम पर रखा गया और 2 जनवरी, 1885 में यह गदरे वाडा, पूना में खुल गया।

पिछले 80 वर्षों के अन्दर-अन्दर एक विशाल वट वृक्ष की भांति डेक्कन एजुकेशन सोसायटी ने शाखाएं सारे महाराष्ट्र में फैला दी हैं। यह अपने ढंग की एक प्रमुख संस्था है, जो कई स्कूल और कॉलेज चलाती है। एक अग्रगामी संस्था होने के कारण, यह अन्य संस्थाओं के लिए नकल का विषय सिद्ध हुई है। लाला लाजपतराय के कथनानुसार, आर्यसमाज तक ने भी डेक्कन एजुकेशन सोसायटी से प्रेरणा ग्रहण की थी।

यद्यपि फर्ग्युसन कॉलेज की सफलता पहले से ही निश्चित थी। फिर भी इसको बम्बई विश्वविद्यालय ने आरम्भ में फर्ग्युसन कॉलेज के केवल प्रथम शैक्षिक वर्ष को ही मान्यता प्रदान की थी। इसके आरम्भिक आजीवन-सदस्यों में एक सुयोग्य प्रोफेसर-मण्डली थी। आप्टे, जो सर्वप्रथम प्रिंसिपल थे, संस्कृत पढ़ाते थे और तिलक गणित, आगरकर इतिहास और तर्कशास्त्र, केलकर अंग्रेजी तथा गोले भौतिक विज्ञान। देशभक्तिपूर्ण आत्मत्याग की भावना से प्रेरित अन्य युवक भी इन लोगों की सहायता को आ पहुंचे, जिनमें सबसे प्रमुख गोपाल कृष्ण गोखले थे।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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